Monday, April 23, 2018

....Language is Universal ....

...बहुत दिन हो गए राष्ट्रभाषा  में  लिखें  हुए...अंग्रेज चले  गए। ..भाषा  छोड़  गए ..और  भाषा  ने  जकड़  लिया। .... घर  मे मैं हिंदी और बांग्ला  बोलता  हूँ ,पर  सोचते  हैं  अंग्रेजी  मे। ..अब सोचता हूँ  की  पर्शियन  क्योँ  नहीं  पढ़ा  ...पढ़े   होते  तो और अच्छा  होता...बादशाहों की   समय  की भाषा जो हमारी  हिन्दी  और उर्दू भाषाओं  को सुसज्जित  किया....बहुत सारे किताब  पढ़   पाते "खुदा बख्श खां लाइब्रेरी" पटना में। ..जो की हमारी  मेडिकल  कॉलेज  के समीप  था  : पर्शियन  मे अबुल फ़ज़ल की "आईन इ अकबरी" शायद। ..भारत को  इन सब  भाषाओं  से अलग  करना  भारत  के  चरित्र  के साथ  खिलवाड़  करने की  बराबर  हैं। ..इस लिए मान  लेनी  चाहिए की  परदेसी भाषा जो परदेस से  आया.... वह हमारी  भी  भाषा हैं। ..पर्शियन की पढ़ाई पटना यूनिवर्सिटी में होती हैं। ..मन तो कर रहा हैं की एडमिशन  ले लूँ। ...अफ़सोस , इतना  नजदीक  रहते  हुए  भी  मिस  कर  गए। ...मानों चिराग  तले अँधेरा। ... बच्चे फ्रेंच  , और लोकल  लैंग्वेज धिवेहि पढ़  रहें  हैं। ..जरूरी  हैं....सारा   काम आसान हो जाता  हैं ,भाषा की जानकारी होने से..... दरअसल भाषा जैसा हथियार कोई है ही नहीं। .... 

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